लेखनी कहानी -04-Sep-2022 जीवन का एक दिन

कहानी प्रतियोगिता हेतु

जीवन का वह एक दिन

हमारे पड़ोस में एक पति पत्नी रहते थे। हम लोग उन्हें मौसी कहते थे। पहले तो उनके बच्चे ही नहीं थे।बड़े दिनों बाद एक बच्चा हुआ था, वह भी दूसरे ही दिन खत्म हो गया था। उसके काफी दिन बाद ये बेटा हुआ था। बेटा होने के बाद सब ठीक ठाक चल रहा था। पढ़ लिख कर उसकी नौकरी भी लग गयी थी। उनका जवान बेटा बैंक में नौकरी करता था। बहुत मुश्किल से उसका जन्म हुआ था तो वह बहुत लाड़ला था। जब भी नौकरी पर जाता मौसी उसे बाहर आकर हमेशा ऑफिस के लिए विदा करती। 
बड़ी हंसी खुशी से समय गुजर रहा था, कि अचानक एक दिन सुबह जब वह ऑफिस जा रहा था, तो मौसी किसी काम में बिजी थी। और वह उस को विदा करने बाहर नहीं आ पाई। वह बात आई गई हो गई, परंतु शाम को बेटा समय से घर नहीं आया, तो थोड़ी परेशान हुई। लेकिन फिर यह सोचा कि दोस्तों के साथ कहीं बैठ गया होगा। रात का 11:00 बज चुका था बेटा घर नहीं आया। तो उनकी  चिंता बढ़ने लगी। बहुत परेशान हो रही थी, परंतु क्या करती। बेटे को फोन लगाया। फोन भी स्विच ऑफ जा रहा था, इसलिए बात नहीं हो पाई। धीरे धीरे 11:30 बज चुका था। 11:30 बजे अचानक मौसी के फोन की घंटी बजी। उन्होंने लपक कर फोन उठाया फोन उठाते ही तो जैसे उनकी दुनिया ही वीरान हो गई थी। फोन पर उधर से किसी ने कहा- कि आपके बेटे का ट्रक से एक्सीडेंट हो गया है, और उसकी दोनों टांगे खत्म हो चुकी है, आप जल्दी से मेडिकल कॉलेज आइए। इतना सुनते ही तो वहां रोना पीटना पड़ गया। फिर वह फौरन आनन फानन में दौड़ कर दोनों अपने बेटे के पास मेडिकल कॉलेज पहुंचे। तो देखा कि बेटा लहूलुहान पड़ा हुआ था। बेटे को होश भी नहीं था, जरा सा होश आया होगा, तो उसने अपना फोन नंबर बता दिया था मां-बाप वहां पहुंचे, इतने में सारे रिश्तेदारों को खबर हो गई. 

सभी वहां पहुंच गए। मौसी अपने बेटे की ऐसी हालत को देख कर बदहबास सी एक ही बात कह रही थी,कि मेरी "जिंदगी का यह एक दिन" मैं कभी नहीं भूल सकती। सबने मौसी को ढांढस बंधाया और कहा.... कि उम्मीद रखो, उम्मीद  पर दुनिया कायम है। बेटा ठीक हो जाएगा, परंतु बेटे की दोनों टांगे कटी हुई देखकर मां-बाप को कैसे सब्र आए।  जैसे तैसे हिम्मत रख उसका ऑपरेशन किया गया। 

परंतु उसके पैरों में गैंग्रीन फैल गया था, जिसके कारण एक हफ्ते बाद उनके बेटे की मौत हो गई। बेटे की मौत के बाद उनके मुंह पर एक ही शब्द रहता कि "जिंदगी का यह एक दिन" मेरे लिए नासूर बन गया ।अपने बेटे को आखिरी दिन सुबह बिदा भी नहीं कर पाई , रोते-रोते वह पागल सी हुई जा रही थी, क्योंकि यह बेटा भी उनको बड़ी मुश्किल से मिला था। जब उसका जन्म हुआ था उसे पहले उनका एक बेटा जन्म लेते ही खत्म हो गया था। और यह बहुत मुश्किल से हुआ था, जो आज चल बसा।

 बेटे की मौत के बाद 6 महीने तक उन्होंने पलक नहीं झपकाया।  वे ऐसे ही रात दिन जागती रहती थी और एक ही बात जुबान पर रहती कि "जिंदगी का एक दिन" वह कभी भूल नहीं पाएगी। इस बात को २१ साल बीच चुके हैं , परन्तु बात अभी भी कल की ही लगती है।
 हम  दुआ करते  हैं कि जैसा उनके साथ हुआ, भगवान ऐसा किसी के साथ ना हो। अलका कहती हैं ऐसा दुखदाई अंत वह कभी भी नहीं भूल पाएंगी। "जीवन का एक दिन"

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' 
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित मौलिक व अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।

   14
6 Comments

Achha likha hai 💐

Reply

shweta soni

05-Sep-2022 04:05 PM

Nice

Reply

नंदिता राय

05-Sep-2022 02:55 PM

शानदार प्रस्तुति 👌👌

Reply